देहरादून। अब उत्तराखण्ड की लोककथाएं, पहाड़ी बोलियां और सदियों पुराना लोकसाहित्य केवल किताबों तक सीमित नहीं रहेगा — उन्हें डिजिटल रूप में संरक्षित कर नई पीढ़ी तक पहुंचाया जाएगा। यह ऐलान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सचिवालय में उत्तराखण्ड भाषा संस्थान की साधारण सभा और कार्यकारिणी समिति की बैठक की अध्यक्षता करते हुए किया।
मुख्यमंत्री ने कहा, “हमारी लोकसंस्कृति हमारी आत्मा है, और अब समय आ गया है कि हम इसे तकनीक के साथ जोड़कर अगली पीढ़ी के लिए सहेजें।”
सरकार ई-लाइब्रेरी बनाने जा रही है जिसमें उत्तराखण्ड की बोलियों, लोकगीतों और कथाओं का डिजिटल संग्रह होगा। ऑडियो-विजुअल फॉर्मेट में कहानियों को तैयार किया जाएगा ताकि बच्चे और युवा दोनों इससे जुड़ाव महसूस करें।
📚 अब बुके नहीं, ‘बुक’ दें भेंट में
मुख्यमंत्री ने एक बेहद अनोखी पहल की शुरुआत की बात भी कही — अब उपहार में फूलों का बुके नहीं, किताब दी जाए। इस ‘बुक इन प्लेस ऑफ बुके’ मुहिम को पूरे राज्य में बढ़ावा मिलेगा।
🎓 स्कूली बच्चों से लेकर वरिष्ठ साहित्यकारों तक सबका ध्यान
हर सप्ताह स्कूलों में स्थानीय भाषा में भाषण, निबंध और अन्य प्रतियोगिताएं होंगी, ताकि बच्चों में अपनी बोली के प्रति लगाव बने। एक भव्य साहित्य महोत्सव का आयोजन भी होगा, जिसमें देशभर के दिग्गज साहित्यकार शिरकत करेंगे। साथ ही, उत्तराखण्ड की सभी प्रमुख बोलियों का एक भाषाई मानचित्र तैयार किया जाएगा।
🏅 सम्मान और प्रतियोगिताओं से होगा हौसला अफज़ाई
‘उत्तराखण्ड साहित्य गौरव सम्मान’ की राशि बढ़ाकर ₹5.51 लाख कर दी गई है, जबकि एक नया दीर्घकालिक साहित्य सेवा सम्मान ₹5 लाख की राशि के साथ घोषित हुआ है। युवा रचनाकारों के लिए ‘युवा कलमकार प्रतियोगिता’ शुरू की जाएगी जिसमें 18–24 और 25–35 आयु वर्ग के लेखक भाग ले सकेंगे।
📖 मोबाइल लाइब्रेरी और बच्चों के लिए लोकभाषा वीडियो
दूरस्थ इलाकों में सचल पुस्तकालयों की शुरुआत की जाएगी। बड़े प्रकाशकों के सहयोग से विभिन्न विषयों की किताबें आम पाठकों तक पहुंचाई जाएंगी। बच्चों में लोकभाषाओं के प्रति रुचि बढ़ाने के लिए छोटे-छोटे वीडियो भी बनाए जाएंगे।
🎶 बाकणा, गोविंद बल्लभ पंत और साहित्य ग्राम
जौनसार-बावर की प्रसिद्ध पौराणिक गायकी ‘बाकणा’ को संरक्षित किया जाएगा। इसके साथ ही गोविंद बल्लभ पंत के समग्र साहित्य का संकलन और 50–100 साल पुराने साहित्यिक लेखों का भी एक संग्रह तैयार किया जाएगा। उत्तराखण्ड की जनजातीय और उच्च हिमालयी भाषाओं पर शोध को बढ़ावा देने के लिए दो ‘साहित्य ग्राम’ भी बनाए जाएंगे, जहाँ लेखन, चर्चा और गोष्ठियों का आयोजन होगा।
भाषा मंत्री सुबोध उनियाल ने बताया कि बीते तीन सालों में उत्तराखण्ड भाषा संस्थान ने कई नई पहल की हैं, और यह प्रक्रिया अब और तेज़ होगी।
इस महत्वपूर्ण बैठक में सचिव आर.के. सुधांशु, श्री वि.षणमुगम, निदेशक स्वाति भदौरिया, डॉ. सुरेखा डंगवाल सहित कई वरिष्ठ अधिकारी एवं शिक्षाविद मौजूद रहे।